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 पं. लखमीचन्द कृत भजन .  हे ईश्वर तू सबके  हे ईश्वर तू सबके बिगड़े हुए समारै काम। हरे राम, हरे राम, हरे राम।।। टेक।। भली जगांह पै नाश घाल दे। मुर्दे म्हं भी सांस घाल दे। राजा नै बनवास घाल दे, उठा दे कष्ट तमाम। हरे राम, हरे राम, हरे राम।।। 1।। बु(ि नै तूं बणा अस्थिर दे। दुख सुख की बता खबर दे। एक पल छन म्हं करदे, तू प्रभु गोरा काला चाम। हरे राम, हरे राम, हरे राम।।। 2।। माया रचकै तू खेल खिला दे। दुख सुख दे कै तुरन्त भुला दे। तलै गिरा दे, स्वर्ग झूला दे, दिखा दे सच्चा धाम। हरे राम, हरे राम, हरे राम।।। 3।। लखमीचन्द तै साज दे दिया। एक कंगले तै ताज दे दिया। हट कै नल तै राज दे दिया, हे सच्चे घनश्याम।।। 4।। प्रस्तुति: सुरेश जांगिड़ उदय, कैथल
 क्राँतिकारी साँगी श्री धनपत सिंह :एक जीवन परिचय जीवन के अविस्मरणीय पहलू     ‘ब्राह्मणवाद’ जैसी कोई विचारधरा या ऐसी कोई जीवन शैली या ऐसा कोई दबाव समूह या मत या सि(ाँत आदि भारत में कभी भी अस्तित्व में नहीं रहे हैं। भारतवर्ष के दलित लेखक एक स्वर से गर्दभ स्वर और कुक्कूर भोंक का सहारा लेकर पानी पी-पीकर दिन-रात कोसते रहते हैं कि ‘ब्राह्मणवाद’ ने यह कर दिया, ब्राह्मणवाद ने वह कर दिया। यदि ‘ब्राह्मण’ शब्द का ये लेखक अर्थ भी जान लेने की तत्परता दिखा लेते तो यह स्थिति उठती ही नहीं। लेकिन ये दलित लेखक ऐसा करेंगे क्यों। यदि ये ऐसा करेंगे तो इनकी राजनीति पिफर कैसे चलेगी? राजनीति चलाने हेतु तो यह आवश्यक हो जाता है कि ये दलित लेखक सत्य-असत्य की खोज न करके केवल शब्दों का ऐसा कैदखाना निर्मित करें जिससे कुछ लोगों को बहकाया जा सके ताकि वे उनके अनुयायी बन जायें। सत्य-असत्य की खोज यदि की जाये तो राजनीति न तो सवर्णों की चल सकेगी तथा न ही इन नये किस्म के सवर्णों की यानि की दलितों की। उपकार-अपकार करने का इरादा इनका कोई होता भी नहीं है। हाँ, उफपर से ये दिखाने का प्रयास अवश्य करते है कि हम ...
  कुछ हरियाणवी चुटकुले     हरियाणे का एक छोरा दिल्ली की एक फैक्ट्री मैं काम कर्या करदा. एक दिन्न छुट्टी मांगण खात्तर मनेजर धौरै आया तो मनेजर उसतै बोल्या, ‘रै छोरे, एक बात समझ मैं कोनी आई अक् तै हर दूसरे-तीसरे दिन छुट्टी लेण आजै, कदी हनीमून पै जाण खात्तर, कदे छोरे के नामकरण खात्तर, कदे, ससुर की तेरहवीं खात्तर...हैं, न्यू बता अक इब क्यां खात्तर छुट्टी मांग रह्या सै ?     लल्लू धीरे सी बोल्या, मनेजर सा‘ब, काल मेरा ब्याह सै. श्र श्र श्र     लल्लू की घरआली कै छः बालक थे. जिब बी कोईसा बालक रोवण लागता तो लल्लू की घरआली न्यूए समझात्ती ‘देख बेट्टा, गलती करकै रोया नी करते...     एक दिन्न बालकां नै घणाए ऊधम काट गेर्या. लल्लू की घरआली परेसान रोवण लागगी अर आसमान कान्नी हाथ ठाकै बोल्ली, ‘इसे बालकां तै तो बगैर बालकां केइ अच्छे थे....     आपणी मां नै न्यू कहन्दे देख छोटी छोरी धौरै आकै तुतला कै, प्यार सेत्ती बोल्ली, ‘री मां, देखे गलती करकै रोया नी करते.... श्र श्र श्र     लल्लू अर उसकी घरआली बस अड्डे पै बेट्ठे...