कुछ हरियाणवी चुटकुले
हरियाणे का एक छोरा दिल्ली की एक फैक्ट्री मैं काम कर्या करदा. एक दिन्न छुट्टी मांगण खात्तर मनेजर धौरै आया तो मनेजर उसतै बोल्या, ‘रै छोरे, एक बात समझ मैं कोनी आई अक् तै हर दूसरे-तीसरे दिन छुट्टी लेण आजै, कदी हनीमून पै जाण खात्तर, कदे छोरे के नामकरण खात्तर, कदे, ससुर की तेरहवीं खात्तर...हैं, न्यू बता अक इब क्यां खात्तर छुट्टी मांग रह्या सै ?
लल्लू धीरे सी बोल्या, मनेजर सा‘ब, काल मेरा ब्याह सै.
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लल्लू की घरआली कै छः बालक थे. जिब बी कोईसा बालक रोवण लागता तो लल्लू की घरआली न्यूए समझात्ती ‘देख बेट्टा, गलती करकै रोया नी करते...
एक दिन्न बालकां नै घणाए ऊधम काट गेर्या. लल्लू की घरआली परेसान रोवण लागगी अर आसमान कान्नी हाथ ठाकै बोल्ली, ‘इसे बालकां तै तो बगैर बालकां केइ अच्छे थे....
आपणी मां नै न्यू कहन्दे देख छोटी छोरी धौरै आकै तुतला कै, प्यार सेत्ती बोल्ली, ‘री मां, देखे गलती करकै रोया नी करते....
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लल्लू अर उसकी घरआली बस अड्डे पै बेट्ठे थे अक् उसकी घरआली बोल्ली देखियो जी वो जो सामणै फट्टै पे आदमी बेठ्या है ना, मन्नै घूर-घूर कै देखण लाग रह्या सै...
‘वो, अरै उसनै तो मैं जाणूं सूं.....
‘हाम्बै, कौण सै भाईरोया...
‘चिन्ता ना करै, कबाड़ी सै कबाड़ी, बेकार अर पुराणी चीज्यां नै न्यूए घूरण की पुराणी आदत सै पट्ठे की.....
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एकबेर की बात अक् लल्लू जी कै खांसी होगी. लल्लू पहोंचग्या वैद धौरे. वैद जी नै खांसी का काढ़ा बणा कै दे दिया. अगले दिन्न लल्लू फेर आया तो वैद जी नै पूच्छा रै लल्लू, काढ़ा पीया अक् नहीं...?
लल्लू बोल्या, वैद जी, चख कै देख लिया था, मेरी समझ मैं तो न्यू आई अक् इस काढ़े तै तो खांसीयो ठीक सै.
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लल्लू जी का बड़ा छोरा गाल मैं खड्या नंगा होकै नाच रह्या था. धौरे तै गुजरदे एक माणस नै धौरै खड़े लल्लू तै कह्या, रै लल्लू, ‘यू तेरा छोरा न्यू क्यूक्कर नंगा होया नाच रह्या सै...
लल्लू बोल्या, ‘ चौधरी आज इस छोरे का जनमदिन सै...
चौधरी बोल्या, ‘रै वा तो ठीक, पर कपड़े क्यूंनी पहर राक्खे ?
लल्लू बोल्या, ‘पैदा बी तो नंगा इ होया था छोरा.
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लल्लू कै एक दिन्न एक बटेऊ आग्या. आ तो गया इब जाण का नाम ना ले. घणी देर सब्र करकै लल्लू नै घणेइ प्यार तै बूझ्या, ‘ ताऊ, और बता तेरे खात्तर के मंगाऊं, चा, दूध, ठण्डा, पान, रिक्सा अक् डण्डा....
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लल्लू एक दिन्न अपणी घरआली तै बोल्या,‘ भागवान, एक बात कहूं ?
घरआली बोल्ली,‘ बोल के ?
‘आजकल के चुटकले पढ़ण लाग रह्या सूं . तों कैह तो हंस बी ल्यूं.
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लल्लू जी नै अपणा बणाया होया एक चित्र दिखाते होए दर्शक तै बताया अक् रै भाई, ‘देख मन्नै इस चित्र मैं जीवन की सच्चाई दिख्याई सै. या देख, एक तरफ तो ढोर डांगर, कीड़े मकौड़े और पक्षी पाणी पीण लागरे सैं अर दूसरी तरफ दफ्तर मैं काम होण लाग रह्या सै....
‘पर काम करण आले तो किते नजर ई कोनी आरे..?
‘अरै बावले, याए तो सै जीवन की सच्चाई.....
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लल्लू जाण लाग रह्या था. सामणै तै एक बड़ा तगड़ा शायर लंगड़ाता होया आरह्या था. लल्लू को अपणी तरफ गौर से देखता पाकै आप्पेइ बोल्या,‘ जूता काट्टै सै, ऊं ल्याया तो कानपुर तै था, असली चमड़े का
लल्लू बोल्या,‘ बात तो ठीक्के कैह रे हांगें जनाब. जूत्ता तो कानपुर का ए लाग्गै पर किसे दुकान का नी मुशायरे तै ल्याया होया लाग्गै सै.
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एक आदमी नै चौड़ा होकै लल्लू तै बताया, ‘अक् मन्नैं तो अपनी घरआली का फोटो पर्स मैं ला राख्या सै..
‘जिबे तो खाली पड़ा रह्वै सै पर्स तेरा, लल्लूजी नै सुणते ही जवाब दिया
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‘बाबूजी, सौ रपैय्ये देद्यो, शंकर भोले भली करेगा....
‘अबे झकोई, भीख मांग रह्या सै अक् बिजली का बिल ? लल्लू जी बोले, सुसरे पहल्यां तो पचास पीसे मांग्या करै था....
भिखारी कुणसा घाट था, पड़ते ई बोल्या, महंगाई होगी भाई साहब, हमनै बी अपणे रेट बढा दिये. मेरे एक पत्तरकार यार नै अखबार मैं मेरी एक फोट्टो छपवा दी थी अर ऊप्पर छपवा दिया था ‘ऐसे-ऐसे भिखमंगे’, इब तों बी सुणले भाई लल्लू या तो सौ रुपये देदे. नहीं तो तेरी बी फोट्टो अखबार मैं छपवा कै ऊप्पर लिखवा द्यूंगां-‘ऐसे-ऐसे नंगे’.....
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लल्लू को अंग्रेजी कम आवै थी. एकबर की बात लल्लू कनाटप्लेस के एक रेस्तरां मैं घुसग्या. बैरे नै आग्गे मीनू धर दिया. लल्लू नै मीनू का तो बेरा था पर पढ़ना कोनी आवै था फेर बी बैरै पै अपणा रौब जमाण खात्तर मीनू के ऊप्पर एक जगां ऊंगली धर कै बोल्या, ‘जा यूए लिया तन्दूर मैं भून कै...
इब बैरा बिचारा हक्का-बक्का. परेसान. बोलती बन्द. कती चुपचाप. मनैजर नै देख लिया अर गुस्सा होकै बैरे तै बोल्या- ‘रै ल्यात्ता क्यूंनी साहब का आडर ?
बैरा बोल्या जी-‘जी क्यूक्कर ल्याऊं, आपके नाम पै ऊंगली धर कै कह रह्या सै अक्जा यूए लिया तन्दूर मैं भून कै...
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लल्लू जी तै एक दिन्न उनका एक दोस्त बोल्या - ‘अपणी घरआली की ऊटपटांग बात्तां सुण-सुण कै तो कईं बेर मेरा जी न्यू करै अक् उसनै ठाकै चौत्थी मंजिल तै सड़क पै फैंक द्यूं. हे भगवान, पर न्यूंनी समझ मैं आंदा अक् मैं न्यूं करूं क्यूक्कर ?
लल्लू बोल्या, ‘क्यूं, वा घणी भारी है के ?
‘अरै नही खसम, न्यू बी तो डर लाग्गे अक् वा बचगी तो मेरा के होगा ?
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लल्लू की घरआली नै एक बार घर मैं घुस्या होया चोर अकेली नै ई पकड़ लिया अर चिमटे गेल ठोक्या. गाम ग्वाण्ड मैं चोक्खी वाह-वाह होई. बीडीओ नै लल्लू के घर आकै बधाई देते हुए लल्लू को कहा,‘ आपकी पत्नी तो बड़ी निडर और बहादुर है.’
‘अजी इसी बात का तो रोना है, लल्लू धीरे से बोल्या.
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लल्लू की घरआली अपणे छोरे तै बोल्ली, ‘यू पकड़ डण्डा अर छात पै जाकै बेठ जा, ध्यान रखिये अक् मुण्डेरे पै कोइ काग्गा ना आकै बेठ जै. क्यूंअक् जे काग्गा मुण्डेरे पै बेठग्या तो मेहमान जरूर आवेगा.
एक मेहमान आग्या. उसके जाए पाच्छै लल्लू की घरआली बोल्ली,- क्यूं रे नासपीट्टे, मन्नै तेरेतै कह्या था अक् ध्यान रखिये, काग्गा ना आकै बेठ जै. फेर यू मेहमान क्यूक्कर आग्या.
छोरा बोल्या,‘री मां कलजुग सै कलजुग. मन्नै तो छात पै खड़े-खड़े बकैदा नजर राक्खी थी. यू सुसरा मेहमान पैहल्यां आया अर्र कव्वा बाद मैं.
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‘मूंह लटकाए क्यूं घूम रह्या रै ?
‘मैं सड़क पै जाण लाग रह्या था, मेरे आग्गै-आग्गै एक छोरी जावै थी. उसनै सोच्ची अक् मैं उसके पाच्छै लाग रह्या. उसनै सपाही तै करदी सिकैत अर सपाही नै चार जूत लाकै छोड्डया
‘सुकर मना बेट्टे भगवान का अक् चार जूत खाकै पिण्ड छूटग्या. एकबर मैं बी एक छोरी के पाच्छै-पाच्छै जाऊं था अक् छोरी के बाप नै देख लिया अर वो एक पण्डत बुल्या ल्याया. आज लग पिण्ड कोनी छुट्या.
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घर मैं ब्याह की बातचीत सी चाल्लै थी तो लल्लू अपणी मां तै बोल्या, ‘इस टैम तो हम्म परिवार मैं पांच जणै ई सैं, दादी, बापू, बेबे, मैं अर मां तै..
मां बोल्ली, ‘रै छोरे, थोड़ेइ दिन्न मैं तेरा ब्याह होजेगा फेर तो छः होजेंगें..
लल्लू बोल्या, ‘री मां इतनै बेबे का ब्याह होजेगा हम्म फेर पांच रहजैंगें
‘अरे नहीं रे, इतनै तू बाप बी तो बणजेगा, हम्म छः होजेंगें फेर-बीच मैं टपक कै दादी बोल्ली
सुणतेइ लल्लू बोल्या, ‘ री दादी इतनै तू बी मरई जागी, हम्म तो फेर पांच के पांचइ रहजेंगें.
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लल्लू अपणे यार तै बोल्या, ‘ घीस्सू यार न्यू सुणन मैं आवे सै अक्तू रोज समुन्दर पै जावै अर पागलां की ढाल खड्या-खड्या समुन्दर तै बतलावै. के बात कर्या करै तू समुन्दर गेल ?
‘तनै ठीक सुण्या भाई लल्लू, साच्ची साच्ची सुण ले. सात साल पहल्यां मन्नै समुन्दरी तूफान मैं डूबती होई एक छोरी को बचाया था. बस्स उस्सेतै मेरा ब्याह होगया. इब मैं हर सांझ समुन्दर तै न्यू पूच्छण आए करूं अक् हे समुन्दर देवता, न्यू तो बता अक् तन्न्ै भला के हक था मेरी जिन्दगी मैं तूफान खड्या करने का...?
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लल्लू एक दिन्न ज्योतिषी धौरै गया अर पूछण लग्या ‘म्हाराज मेरे सज्जे हाथ मैं खाज होण लागरी, बताइयो पीसे आवेंगें अक जावेंगें
ज्योतिषी लल्लू का हाथ पकड़ कै बोल्या,‘ खुस्स होज्या छोरे, लखपति होवण वाला सै तों
‘मेरे तो पैरां मैं बी खारिस होण लागरी
‘ज्योतिषी बोल्या रै फेर तो करोड़पति बनण के चान्स होरे तेरे
‘सबेर की मेरे सिर मैं बी खाज होण लागरी
‘ज्योतिषी कूद कै बोल्या, फेर तो भाजले आड़ै तै डागधर धौरे, अर्र अपणी इस खुजली का इलाज करवा
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एक घणेइ काले रंग का आदमी सफेद कपड़े पैहन्कै लल्लू धौरै आया अर पूछण लग्या अक् मैं कैसा दिखू सूं ? लल्लू फट बोल्या-‘ इसा लाग्गै जणो पतास्से मैं मकौड़ा बड़ रह्या हो.
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लल्लू का छोरा हिसाब के पेपर मैं फस्ट आया. घर आया तो लल्लू नै बूझा, रै के के पूच्छा था तेरे तै
छोरा बोल्या, ‘अक् आदमी कै कितने हाथपैर होवैं सें. न्यू पुच्छया था. ‘फेर तन्ै के बताया ?
छोरा बोल्या, ‘ मनैं बताए पांच होवें
लल्लू हैरान्नी तै बोल्या, ‘पांच बताण पै बी फस्ट आया
छोरा बोल्या, ‘होर के, किलास के बाक्कि छोरों नै तो छ बताए थे....
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डॉक्टर-भाई लल्लू, आपकी बिमारी का कारण समझ मैं कोनी आर्या, शायद इसका कारण नशा है...
लल्लू बोल्या, ‘कोई बात नी डॉक्टर साब, जिब आपका नशा उतरजेगा, मैं फेर आजूंगां.
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एक फेरी लल्लू की एक जणे तै बहस होगी. तंग होकै वो आदमी लल्लू तै बोल्या, ‘तेरे दिमाग मैं तो गोबर भर रह्या सै...
लल्लू फट बोल्या, ‘ अच्छा, मैं बी कहूं अक तै इतनी देर तै मेरा दिमाग क्यूं चाटण लाग रह्या सै.
एकबर लल्लू तै उसके मास्टर नै बूझा रै छोरे न्यू बता अक् आज के दन तनै के अच्छा काम कर्या. लल्लू बोल्या, मास्टरजी आज मनै अर मेरे चार दोस्तों नै एक बुढ़िया तै सड़क पार करवाई...
मास्टर बोल्या रै शाबास पण न्यू तो बता अक् चार दोस्तों की के जरूरत पड़गी सड़क पार कराण मैं
लल्लू बोल्या, मास्टर जी मिल कै ई तो कर्यादी वरना बुढ़िया थोड़ी करना चाहवै थी
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चौधरण बोल्ली रै लल्लू बेरा तन्नै अक् अमरीक्का मैं तलाक लेणा बहोत असान सै...
लल्लू बोल्या, बेरा सै जिबि तो अमरिक्का की छोरियां ब्याह कराते बखत रोवैं कोनी...
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चौधरण बोल्ली रै लल्लू यें एक महीन्ने की छुट्टियां तनै कड़ै बिताई ?
लल्लू बोल्या, भागवान एक दिन्न घुड़सवारी मैं बाक्की 29 दिन हस्पताल मैं.
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पं. लखमीचन्द कृत भजन . हे ईश्वर तू सबके हे ईश्वर तू सबके बिगड़े हुए समारै काम। हरे राम, हरे राम, हरे राम।।। टेक।। भली जगांह पै नाश घाल दे। मुर्दे म्हं भी सांस घाल दे। राजा नै बनवास घाल दे, उठा दे कष्ट तमाम। हरे राम, हरे राम, हरे राम।।। 1।। बु(ि नै तूं बणा अस्थिर दे। दुख सुख की बता खबर दे। एक पल छन म्हं करदे, तू प्रभु गोरा काला चाम। हरे राम, हरे राम, हरे राम।।। 2।। माया रचकै तू खेल खिला दे। दुख सुख दे कै तुरन्त भुला दे। तलै गिरा दे, स्वर्ग झूला दे, दिखा दे सच्चा धाम। हरे राम, हरे राम, हरे राम।।। 3।। लखमीचन्द तै साज दे दिया। एक कंगले तै ताज दे दिया। हट कै नल तै राज दे दिया, हे सच्चे घनश्याम।।। 4।। प्रस्तुति: सुरेश जांगिड़ उदय, कैथल
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